आज हम आपको देवभूमि में लापता एक ऐसे देवी मंदिर की कहानी बता रहे है जिसको कई सालों से खोजा जा रहा है। लोकमान्यता व प्राचीन कथाओं की मानें तो चंद शासनकाल में द्वाराहाट क्षेत्र में बुजुर्ग महिला धान कुटाई में निपुण थी। उसकी कोई संतान नहीं थी। बेसहारा और धार्मिक प्रवृत्ति वाली ये महिला धान कुटाई से जो पैसे जमा किये थे उससे उन्होंने एक मंदिर बनवाया, जिसे बाद में कुटुंबरी देवी मंदिर के रूप में प्रसिद्धि मिली। यह भी कथा है कि बुजुर्ग महिला जब स्वर्ग सिधार गई तो एक अन्य बेसहारा महिला ने मंदिर में सेवादारी कर जीवन बिताया था।
दादी अम्मा का मंदिर है कुटुंबरी देवी
पर्यटन और धार्मिक स्थलों की वजह से मशहूर देवभूमि एक लापता तीर्थस्थल की वजह से भी जानी जाती है…. हाँलाकि पिछले एक दशक से चल रही खोज में इस लुप्त मंदिर की असली ज़मीन तक का पता नहीं लगाया जा सका है। उधर स्थानीय एएसआइ दफ्तर की मौजूदा रिपोर्ट से उम्मीदों की नई रौशनी दिखाई दे रही हैं।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन संरक्षित, लेकिन गायब 24 स्मारकों में से उत्तराखंड का एकमात्र कुटुंबरी देवी मंदिर किसी अचम्भे से कम नहीं। एक्सपर्ट बताते हैं कि 1950-60 तक द्वाराहाट के कनार क्षेत्र में 16वीं सदी के इस मंदिर के अवशेष मौजूद रहने का जिक्र होता था। लेकिन हकीकत में इस मंदिर का वजूद कहाँ होगा ये आज भी रहस्य बना हुआ है जिसको लेकर कई सालों से पहाड़ के लोगो में उत्सुकता और कौतुहल बना हुआ है। एक दौर में जब चकबंदी हुई तो बेनाप भूमि पर लोगों ने अपने मकान बनाने के साथ खेती बाड़ी शुरू कर दी थी। कहा जाता है कि उसी दौरान अवशेष के रूप में मौजूद कुटुंबरी मंदिर का वजूद भी लुप्त होता चला गया होगा। समय बीता और आबादी बढ़ने के साथ ही देवी मंदिर की खोज एक चुनौती बनती गयी।
आप सोच रहे होंगे जिस देवी और मंदिर की बात हम कर रहे हैं दरअसल वो कौन हैं और क्या किस्सा है ? तो चलिए बताते हैं। कुटुंबरी देवी मंदिर का वजूद कब तक रहा, अब तक यही स्पष्ट नहीं हो सका है। बुजुर्ग किसी पुराने दौर में मंदिर होने का जिक्र जरूर करते थे। यह दावा करना गलत है कि मंदिर के अवशेष रूपी पत्थर व अन्य सामग्री गांव के घरों में इस्तेमाल की गई है। पूरा द्वाराहाट स्थापत्य कला की दृष्टि से बहुत समृद्ध रहा है। कत्यूरी कालीन मंदिरों में प्रयुक्त पत्थरों जैसे पाषाण खंड जहां तहां बिखरे पड़े हैं।
चांचरी यानि चंद्र पर्वत से ही कत्यूरी कालीन मंदिरों के निर्माण को पत्थर निकाले गए थे।भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इकाई के मुताबिक रिपोर्ट भेजी गयी थी जिसके फाइनल निरीक्षण का इंतज़ार है जिसके लिए मुख्यालय से अफसरों को दौरा करना है।विभाग के मुताबिक कुटुंबरी देवी मंदिर अस्तित्व में ही नहीं है हांलाकि कहीं कहीं कटस्टोन लगे मिलते हैं। बीते समय में टीम सर्वे में उस स्थल तक पहुंच चुकी है जहां मंदिर का होना बताया जाता है।