पलक झपकते ही झूठ पकड़ने का नया फॉर्मूला तैयार: झूठ कितना छुपाया जा सकता है ? पुराने ज़माने में झूठ पकड़ने के लिए चेहरे के हाव-भाव, घबराहट, या पसीने पर ध्यान दिया जाता था. फिर आई पॉलिग्राफ मशीनें, लेकिन चालाक दिमाग ने इन्हें भी चकमा देना सीख लिया. अब विज्ञान और तकनीक ने एक कदम आगे बढ़कर ऐसे तरीके खोज निकाले हैं, जिनसे झूठ बोलने वाला बच ही नहीं सकता. चाहे वह कितनी भी सफाई से क्यों न बोले. पलक झपकते ही झूठ पकड़ने का नया फॉर्मूला तैयार है. खोजी नारद की इस रिपोर्ट में आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से.
हर दिन झूठ बोलने की आदत
आपको शायद यकीन न हो, लेकिन एक रिसर्च के मुताबिक इंसान औसतन दिन में एक या दो बार झूठ बोलता है. 1996 में वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक बेला डीपाओलो और उनकी टीम ने यह अनुमान लगाया था. अब अगर यही स्टडी दोबारा की जाए, तो शायद आंकड़े और बढ़े हुए मिलें, क्योंकि आज के डिजिटल दौर में झूठ फैलाना और उसे छिपाना पहले से आसान हो गया है.
विज्ञान ने कैसे किया झूठ पकड़ने की कोशिश
पहले झूठ पकड़ने के लिए पसीने, हृदय गति और तनाव के स्तर को मापा जाता था. पॉलिग्राफ टेस्ट यानी झूठ पकड़ने वाली मशीनें इसी सिद्धांत पर काम करती थीं. लेकिन समय के साथ विज्ञान ने और भी उन्नत तरीके खोज निकाले.
1. आवाज़ से पकड़ में आता है झूठ: जब इंसान झूठ बोलता है, तो उसकी आवाज़ में हल्का कंपन आ जाता है या उसकी बोलने की गति बदल जाती है. वैज्ञानिक इसी पैटर्न को पकड़कर यह अंदाजा लगाते हैं कि कोई व्यक्ति झूठ बोल रहा है या सच.
2. मस्तिष्क तरंगों की स्टडी: आधुनिक न्यूरोसाइंटिस्ट्स झूठ पकड़ने के लिए दिमागी गतिविधियों को रिकॉर्ड करते हैं. जब कोई व्यक्ति सच बोलता है, तो उसका दिमाग एक खास तरह से प्रतिक्रिया देता है, लेकिन झूठ बोलते समय ज़्यादा ऊर्जा खर्च होती है और अलग-अलग हिस्सों में गतिविधियां बढ़ जाती हैं.
3. आंखों की पुतलियों का फैलाव: हाल ही में हुए एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने यह पाया कि जब इंसान झूठ बोलता है, तो उसकी पुतलियां फैल जाती हैं. वालेंटिन फॉशर और एंके हुकॉफ द्वारा की गई स्टडी में यह साबित हुआ कि झूठ बोलते वक्त आंखों की पुतलियों में अधिक विस्तार होता है, क्योंकि यह दिमागी प्रक्रिया अधिक मेहनत मांगती है.
तकनीक और विज्ञान ने झूठ को पकड़ने के कई नए तरीके विकसित किए हैं, मगर इंसानी दिमाग भी चतुर है. झूठ बोलने वाले लोग भी नए-नए तरीके अपनाते हैं ताकि वे पकड़े न जाएं. लेकिन एक बात तय है चाहे वह हल्का-फुल्का सफेद झूठ हो या किसी बड़े धोखे की साजिश, विज्ञान लगातार इसे पकड़ने के नए तरीके खोज रहा है.