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Home » कैंसर और मोबाइल फोन का संबंध
स्वास्थ्य

कैंसर और मोबाइल फोन का संबंध

Relationship between cancer and mobile phones
Sponsored By: Ananya SahgalFebruary 28, 2025No Comments4 Mins Read
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कैंसर और मोबाइल फोन का संबंध
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कैंसर और मोबाइल फोन का संबंध: क्या मोबाइल चलाने से कैंसर होता है? इससे संबंधित कई सामग्रियां इंटरनेट पर हैं, लेकिन किसी में भी ठोस जानकारी नहीं दी गई है. वहीं, इसे लेकर कई बार शोध भी हो चुके हैं, लेकिन अब तक हुए शोध में यह बात सामने नहीं आई है कि मोबाइल से कैंसर हो सकता है और ना ही अब तक कोई ऐसा मामला सामने आया है. डॉक्टरों ने इस बात को सिरे से खारिज कर दिया है कि मोबाइल चलाने से किसी भी प्रकार का कैंसर होता है. हां, ऐसा जरूर है कि मोबाइल चलाने से स्वास्थ्य संबंधित दूसरी समस्याएं हो सकती हैं, लेकिन कैंसर का इससे कोई लेना देना नहीं है.

रेडिएशन का क्या है असर

डॉक्टर बताते हैं कि इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि कई जगह इस तरह की बातें कही गई हैं. इस तरह के कई दावे किए गए हैं, जिसमें कहा गया है कि मोबाइल से कैंसर हो सकता है. इस संबंध में बाकायदा कई शोध भी हुए हैं, लेकिन अभी तक किसी भी शोध में इस तरह की कोई जानकारी सामने नहीं आई है, जिसमें यह दावे के साथ कहा जाए कि मोबाइल से किसी भी प्रकार का कैंसर हो सकता है.दरअसल, कई रिपोर्ट्स में यहां तक दावा किया गया कि मोबाइल और वाई फाई डिवाइस रेडियो फ्रीक्वेंसी विकिरण उत्सर्जित करते हैं. रेडियो फ्रीक्वेंसी विकिरण के ज्यादा संपर्क में रहने से इंसान के शरीर में कैंसर सेल्स बनते हैं. डॉक्टर ने स्पष्ट बताया कि हैं कि, इस संबंध में कई शोध हो चुके हैं, लेकिन अभी तक किसी भी शोध में इस बात के सबूत सामने नहीं आए हैं, जिससे यह कहा जा सके कि मोबाइल चलाने से कैंसर होता है. वहीं डॉक्टर ने कहा कि मैंने अपने करियर में अब तक ऐसा नहीं देखा है, जिसमें मोबाइल चलाने से कैंसर के होने की बात सामने आई हो. इसे लेकर अभी भी शोध जारी है, लेकिन मुझे लगता है कि इसमें बहुत समय लगेग|डॉक्टर के मुताबिक विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इसे लेकर शोध कर चुका है, लेकिन इसमें कैंसर होने के कारण की बात अब तक सामने नहीं आई है. वो बताते हैं कि अब तक इस बात को लेकर किसी भी प्रकार की स्टडी नहीं हुई है, जिसमें यह कहा जाए कि कितने घंटे मोबाइल फोन चलाना उचित रहेगा, लेकिन हां बतौर डॉक्टर मैं यही कहूंगा कि मोबाइल का कम से कम इस्तेमाल करें, क्योंकि इससे एकाग्रता भंग होती है और कई मौकों पर देखा गया है कि दूसरे कामों में भी मन लगना बंद हो जाता है. ऐसी स्थिति में लोगों को यही सलाह ही दी जाती है कि वो मोबाइल का कम से कम इस्तेमाल करें.  डॉ.  बताते हैं कि मोबाइल फोन और वाईफाई एक रेडियो फ्रीक्वेंसी छोड़ते हैं, जो नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन का एक टाइप है. ये नॉन आईनेजरी एक्सरे और गामा की तरह पावरफुल नहीं होता है, इसलिए यह डीएनए को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं और सीधा कैंसर का कारण नहीं बनते हैं.

डॉक्टरों ने दी सलाह

डॉक्टर के अनुसार, डब्ल्यूएचओ और इंटरनेशनल रिसर्च ऑन कैंसर ने रेडियो फ्रीक्वेंसी को संभावित रूप से कैंसर का कारण माना है. इसको हम ग्रुप टू बी कैटेगरी में रखते हैं. इसका मतलब है कि इस बात के पक्का सबूत नहीं हैं कि यह कैंसर का कारण बनते हैं. लेकिन, इसे लेकर कुछ स्टडी हुए हैं, जिसमें कनेक्शन दिखाया गया है, लेकिन अभी इसे लेकर और ज्यादा शोध की जरूरत है. वो बताते हैं कि इंटरनेशनल रिसर्च ऑन कैंसर और यूएस में इसे लेकर कई शोध हो चुके हैं, लेकिन अब तक ऐसा कोई भी सबूत नहीं मिला है, जिससे यह साफ हो सके कि मोबाइल से कैंसर होता है. लेकिन, कुछ स्टडी ऐसी हुई है, जिसमें हैवी मोबाइल यूजर में ग्लियोमा का खतरा दिखाया गया है. खैर, इसे लेकर वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं. वे बताते हैं कि कोशिश करें कि मोबाइल का कम से कम यूज हो. सोते समय मोबाइल को अपने शरीर से दूर रखें.

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