हिन्दू धर्म में विवाह के बाद महिलाएं अपने मांग में सिंदूर लगाती हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह पति की आयु से संबंध रखता है और अपने जीवनसाथी के प्रति महिलाओं का सम्मान दर्शाता है. यह भी कहा जाता है कि मांग में सिंदूर शादीशुदा होने की एक निशानी है. यह परंपरा काफी प्राचीन है और इसे आज भी बखूभी निभाया जाता है. लेकिन, क्या आप जानते हैं सिंदूर लगाने का क्या महत्व है और इससे जुड़े नियम क्या हैं? इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं.
दरअसल, ऐसा कहा जाता है कि सूर्यास्त के बाद मांग में सिंदूर नहीं लगाना चाहिए. ठीक वैसे ही जैसे कि मंगलवार के दिन भी सिंदूर लगाने को लेकर मना किया जाता है. ऐसा क्यों है और क्या हैं इसके ज्योतिष नियम? आइए जानते हैं. आपको बता दें कि, सिंदूर, हल्दी और पारे से बना मिश्रण होता है जिसका रंग लाल होता है. ज्योतिषाचार्य के अनुसार, सबसे पहले शादी के दौरान दूल्हा अपनी दुल्हन की मांग में सिंदूर भरता है. इसे सिंदूर दान कहा जाता है. वहीं, इस रस्म को भी कन्यादान की तरह अहम माना गया है. सिंदूर को सुहागिन की निशानी माना जाता है. धार्मिक महत्व की बात करें तो, सिंदूर को मां पार्वती के आशीर्वाद के रूप में देखा जाता है.
ऐसी मान्यता है कि इससे मां पार्वती की कृपा मिलती है और पति की आयु लंबी होती है. अब बात करें मांग में सिंदूर लगाने को लेकर एक खास नियम की तो ऐसा कहा जाता है कि सूर्यास्त के बाद सिंदूर नहीं लगाना चाहिए. इसके पीछे धार्मिक कारण मिलता है, जिसके अनुसार भगवान सूर्य को ऊर्जा और समृद्धि का प्रतीक माना गया है और यह दिन के समय को नियंत्रित करता है. ऐसे में सूर्य उदय से लेकर सूर्यास्त तक के समय को सिंदूर लगाना शुभ माना गया है. वहीं शाम के बाद रात्रि का नियंत्रण चंद्रमा का होता है. ऐसे में कुछ ज्योतिष मान्यता हैं कि सूर्यास्त के बाद सिंदूर नहीं लगाना चाहिए. क्योंकि, इससे सकारात्मक प्रभाव नहीं मिलता.ऐसे में हमारे देश की ज़्यदातर सुहागिन औरतें खासकर नई दुल्हनों को घर की महिलएं इस रिवाज़ को निभाने की अहमियत समझा कर रात में सिंदूर लगाने से मना करती हैं.