इस देवी मंदिर में चढ़ाए जाते थे अंग्रेजों के कटे सिर: चैत्र नवरात्रि शुरू हो गई है. ऐसे में आज हम आपको गोरखपुर के उस मंदिर के बारे में बताएंगे, जिसका इतिहास बाबू बंधू सिंह नामक स्वतंत्रता सेनानी से जुड़ा हुआ है. इस मंदिर में अंग्रेजों की बलि दी जाती थी. उनके सिर काटकर माता को चढ़ाए जाते थे. मंदिर में हर नवरात्रि को यहां काफी बड़ा मेला भी लगता है.
गोरखपुर में तरकुलहा देवी मंदिर एक प्रसिद्ध मंदिर है. यहां पर दूर दराज से लोग मां तरकुलहा का दर्शन करने के लिए आते हैं. चैत्र नवरात्र में यहां पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु मां का दर्शन करने के लिए आते हैं. तरकुलहा देवी मंदिर का इतिहास बाबू बंधू सिंह नामक स्वतंत्रता सेनानी से जुड़ा हुआ है. माना जाता है कि बाबू बंधू सिंह ने यहां तरकुल के पेड़ के नीचे पिंड स्थापित कर देवी की उपासना की थी.बाबू बंधू सिंह का भारत के स्वतंत्रता में काफी सहयोग रहा है. अंग्रेजों के खिलाफ उन्होंने गोरिल्ला युद्ध में भाग लिया था. डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह तरकुलहा देवी को अपनी इष्ट देवी मानते थे. वह गोरिल्ला युद्ध में काफी माहिर थे. उन्होंने इस युद्ध से अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिया था.
सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से पहले इस इलाके में जंगल हुआ करता था. यहां से गर्रा नदी होकर गुजरती थी. और यहीं नदी तट पर तरकुलक पेड़ के नीचे बाबू बंधू सिंह पिंडी स्थापित कर देवी की उपासना किया करते थे. जब भी कोई अंग्रेज उस जंगल से गुजरता तो बाबू बंधू सिंह उसे मार कर उसका सिर देवी मां के चरणों में समर्पित कर देते थे. पहले अंग्रेजों को यह लगा कि उनके सिपाही जंगल में जाकर लापता हो जाते हैं, लेकिन बाद में उन्हें यह जानकारी हो गई कि उनके सिपाही बंधू सिंह का शिकार हो रहे हैं. इसके बाद अंग्रेज उनकी तलाश शुरू कर दी, लेकिन वो अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे. बाद में एक व्यापारी के मुखबिरी से वह उनके हाथ लग गए.
अंग्रेज सरकार ने बंधू सिंह को फांसी की सजा दी. बंधू सिंह को छह बार अंग्रेजों ने फांसी दी और वह कामयाब नहीं हुए सातवीं बार बंधू सिंह को अलीपुर चौराहे पर सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी गई. बताया जाता है कि सातवीं बार उन्होंने मां का ध्यान करते हुए उन्हें फांसी हो जाने का आग्रह किया. इसके बाद उन्हें फांसी हुई. यह भी माना जाता हैं कि जब बाबू बंधू सिंह को अंग्रेजों ने फांसी दी तो तरकुल के पेड़ का ऊपरी हिस्सा टूट गया और खून के फव्वारे निकलने लगे. इस घटना के बाद, स्थानीय लोगों ने उस स्थान पर देवी मां की पूजा करनी शुरू कर दी और बाद में मंदिर का निर्माण करवाया.