प्रभु श्रीराम और उनकी गाथा रामायण पर विश्वास अब केवल आस्था का विषय नहीं रह गया है, बल्कि इसके ऐतिहासिक साक्ष्य भी समय-समय पर सामने आते रहे हैं। भारत में नासा सहित कई संस्थानों ने श्रीराम सेतु के प्रमाण और अन्य साक्ष्यों के माध्यम से रामायण की ऐतिहासिकता पर मुहर लगाई है। अब इसमें चीन के विद्वानों का भी समर्थन मिला है, जिन्होंने श्रीराम के पदचिह्नों का पता लगाने का दावा किया है। इससे यह साबित होता है कि त्रेता युग में श्रीराम ने वास्तव में पृथ्वी पर अवतार लिया था और रामायण केवल एक काल्पनिक कथा नहीं है। बीजिंग में भारतीय दूतावास द्वारा आयोजित “रामायण: एक कालातीत मार्गदर्शिका” संगोष्ठी में चीनी विद्वानों ने खुलासा किया कि चीन में रामायण से जुड़े साक्ष्य बौद्ध धर्मग्रंथों में मिलते हैं।
इस संगोष्ठी में लंबे समय से धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभावों पर शोध कर रहे चीनी विद्वानों ने रामायण के चीन तक पहुंचने और उसके प्रभाव के बारे में विस्तृत जानकारी दी।सिंघुआ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. जियांग जिंगकुई ने बताया कि रामायण के सांस्कृतिक प्रभाव का अंतर-सांस्कृतिक प्रसारण के माध्यम से विस्तार हुआ है। रामायण की कहानियां केवल हान चीनी संस्कृति तक सीमित नहीं हैं, बल्कि तिब्बती क्षेत्र में भी इसका प्रभाव है, जिसे चीनी सरकार ज़िज़ांग के नाम से जानती है। चीन में रामायण के प्रसार का मुख्य माध्यम बौद्ध धर्मग्रंथ रहे हैं।
प्रोफेसर जियांग के अनुसार, बौद्ध धर्म के प्रवर्तकों ने दशरथ, हनुमान और अन्य प्रमुख पात्रों को बौद्ध धर्म की शिक्षाओं के साथ जोड़ा है। इस प्रक्रिया में रामायण का केवल बौद्धिक अनुवाद नहीं हुआ बल्कि उसमें सांस्कृतिक बदलाव भी देखने को मिला।चीनी साहित्य में हनुमान के समानांतर ‘सन वुकोंग’ नामक पात्र को भी इसी सांस्कृतिक प्रभाव का हिस्सा माना गया है। चाइनीज एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज के प्रोफेसर लियू जियान ने अपनी प्रस्तुति में बताया कि चीनी लोककथाओं में सन वुकोंग का जो महत्व है, उसका स्रोत भारत के हनुमान हैं। यह प्रमाणित करता है कि चीनी साहित्य में भी रामायण की छवि ने अपना स्थान बना लिया था। सिचुआन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर किउ योंगहुई ने अपने शोध में कहा कि चीन के फुजियान प्रांत में एक मंदिर है, जहां हिंदू देवताओं की मूर्तियां और प्रतीक मिलते हैं। यह मंदिर एक हिंदू पुजारी द्वारा प्रबंधित होता है। बौद्ध धर्म के माध्यम से भारतीय संस्कृति का चीन में प्रवेश और प्रभाव का यह एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
चीनी विद्वान जुआनजैंग, जो सातवीं शताब्दी में भारत आए थे, ने भी नालंदा में अध्ययन के दौरान रामायण की कहानियों का उल्लेख अपने यात्रा विवरणों में किया था। तिब्बत में रामायण का प्रभाव तुबो साम्राज्य के दौरान देखा गया, जहाँ इस महाकाव्य को साहित्यिक और नाट्य प्रदर्शनों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। प्रोफेसर जियांग के अनुसार, तिब्बत में रामायण की कहानियां केवल शास्त्रीय ग्रंथों में ही सीमित नहीं थीं, बल्कि आम जनमानस में भी प्रचलित थीं। रामायण महाकाव्य केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह आदर्श समाज और आदर्श व्यक्तित्व की गहरी व्याख्या करता है।
श्रीराम के व्यक्तित्व और उनके आदर्श राज्य के माध्यम से यह महाकाव्य भारतीय संस्कृति में ‘आदर्श’ की अवधारणा को साकार करता है। चीनी विद्वानों के अनुसार, रामायण न केवल एक महाकाव्य है बल्कि यह एक सांस्कृतिक पुल भी है जो सभ्यताओं को जोड़ता है। चीनी विद्वानों का यह शोध एक बार फिर इस तथ्य को प्रमाणित करता है कि रामायण महज एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि एक ऐतिहासिक महाकाव्य है जो विभिन्न संस्कृतियों में अपनी अमिट छाप छोड़ चुका है। श्रीराम के जीवन की गाथा और उनके आदर्शों का प्रभाव न केवल भारत, बल्कि चीन और तिब्बत जैसे देशों में भी गहराई से व्याप्त है।