Election Ink : साबुन लगाओ या नेलपॉलिश रिमूवर, वोट वाली स्याही नहीं मिटती! आखिर कौन-सा छिपा है इसमें रहस्य :- बिहार चुनाव (Bihar Elections) के बीच अमिट स्याही (indelible ink) भी चर्चा में है जो मतदान का गवाह बनती है. भारत में एक ही कंपनी के पास चुनावी स्याही (Electoral ink) बनाने और बेचने का अधिकार है. वो है कर्नाटक की मैसूर पेंट एंड वार्निश कंपनी (Mysore Paint and Varnish Company) . अब सवाल उठता है कि नीली स्याही का फॉर्मूला किसने तैयार किया, इसमें ऐसा क्या खास है कि नीला निशान आसानी से मिटता नहीं और क्यों इसकी जरूरत पड़ी थी?
उंगली पर नीली स्याही मतदान की मुहर लगाती है. बिहार चुनाव के शोर के बीच चुनावी स्याही भी चर्चा में आ गई है. वो स्याही जिसे भारत (India ) से दुनिया के 35 देश खरीद रहे हैं. इसकी शुरुआत भी दिलचस्प रही है।
आजादी के बाद जब 1951-52 में पहली बार आम चुनाव हुए तो कई मामले ऐसे भी आए जब कई लोगों ने दूसरे के नाम पर वोट डाल दिया. यानी कई लोगों ने एक से अधिक बार मतदान किया. शिकायतें बढ़ती गईं और अंतत: मामले चुनाव आयोग के पास पहुंचे।
इसका समाधान निकालने के लिए अलग-अलग विचार रखे गए. अंत में आयोग ने सोचा कि मतदाता की उंगली पर कोई ऐसा निशान बनाया जाए, जो आसानी मिटे नहीं. ताकि स्पष्ट हो सके कि उसने मतदान कर लिया है. इसके बाद बड़ा सवाल आ खड़ा हुआ कि इसे कौन तैयार करेगा और क्या ऐसा संभव है? तमाम सोच विचार के बाद आयोग इसका हल निकालने के लिए नेशनल फिजिकल लेबोरेट्री ऑफ इंडिया के पहुंचा।
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जब आयोग ने इसका हल निकालने के लिए नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इंडिया (National Physical Laboratory of India) से संपर्क किया तो NPL ने ऐसी स्याही तैयार की जिसे पानी या केमिकल से नहीं मिटाया जा सकता था।
इस स्याही को बनाने का ऑर्डर मैसूर पेंट एंड वार्निश कंपनी को दिया. कंपनी ने ऐसी स्याही तैयार की जो मतदान का प्रमाण बन गई. तब से लेकर अब तक कर्नाटक के मैसूर की यही कंपनी चुनावी स्याही बनाती चली आ रही है. इसे मैसूर में तैयार किया जाता है वो भी सीक्रेट फार्मूले से।
