भगवान श्री कृष्ण को 56 भोग क्यों लगाया जाता है क्या कहानी है इसके पीछे: भगवान श्री कृष्ण को 56 भोग (छप्पन भोग) चढ़ाने की परंपरा के पीछे एक बहुत ही दिलचस्प और पौराणिक कहानी है, जो भगवान श्री कृष्ण के साथ जुड़ी हुई है।यह परंपरा विशेष रूप से भगवान श्री कृष्ण के साथ मथुरा और द्वारका में जुड़ी हुई है। भगवान श्री कृष्ण को ‘माखन चोर’ और ‘मुरली वाले’ के रूप में जाना जाता है, और उनके बारे में कई किंवदंतियां हैं जो उनके बालपन से लेकर उनके युवा काल तक को दर्शाती हैं।मथुरा में भगवान कृष्ण का प्रेम: भगवान श्री कृष्ण जब मथुरा में रहते थे, तो वे अपने दोस्तों और गोपियों के साथ खेलते थे। मथुरा के राजा कंस से बचने के लिए वे वृंदावन में रहते थे, जहां उनकी यशोदा माता और नंद बाबा के साथ बहुत सारी कहानियाँ हैं। एक दिन, जब कृष्ण ने माखन (बटर) चोरी किया था और उनके साथ अन्य गोपियां भी माखन चुराने लगीं, तो यशोदा माता ने उन्हें डांटा। इस घटना से भगवान श्री कृष्ण की माखन और दूध की प्रेम कहानी शुरू हुई।भगवान कृष्ण के लिए उनका प्रिय भोग माखन, दूध, घी, और ताजे फल थे। इसके बाद, भगवान कृष्ण द्वारका में रहने लगे और उन्हें हर प्रकार के स्वादिष्ट पकवान अर्पित किए जाते थे। द्वारका में भगवान कृष्ण की पूजा के दौरान, भक्त उन्हें बहुत से भोग अर्पित करते थे, जिसमें 56 प्रकार के विभिन्न पकवान शामिल होते थे। इसे “56 भोग” कहा गया क्योंकि यह संख्या भगवान श्री कृष्ण के हर प्रकार के स्वाद और प्रिय व्यंजनों का प्रतीक मानी जाती है।यह परंपरा इस बात को दर्शाती है कि भगवान श्री कृष्ण को सभी प्रकार के स्वादों में स्नेह और भक्ति के साथ भोग अर्पित किया जाए। भगवान के प्रति भक्तों का प्रेम और समर्पण इतना विशाल था कि उन्होंने 56 प्रकार के स्वादिष्ट पकवानों को अर्पित किया ताकि भगवान को सभी तरह के स्वादों का अनुभव हो सके।56 भोग का मतलब केवल संख्या नहीं है, बल्कि यह भगवान के लिए श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है। यह परंपरा हमें यह सिखाती है कि भगवान को अपनी भक्ति में हर प्रकार की विविधता और प्यार अर्पित करना चाहिए, चाहे वह पकवान हो या भावना।इसलिए, जब भी भगवान श्री कृष्ण को 56 भोग अर्पित किए जाते हैं, तो यह भक्तों की भावना और समर्पण का प्रतीक है, और साथ ही भगवान के प्रति उनकी असीम श्रद्धा और प्रेम को दर्शाता है।