गैरसैण में हुए सत्र की पूरी कहानी :- समुद्रतल से 2390 मीटर की ऊँचाई पर बसी उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण का भराड़ीसैंण विधानसभा परिसर सत्र के दौरान तो गुलजार रहता है, लेकिन सत्र समाप्त होते ही सन्नाटे में डूब जाता है। यही वजह है कि गैरसैंण की राजधानी बनने की उम्मीदें आज भी अधूरी ही हैं क्योंकि गैरसैंण में सत्र तो आहूत किया जाता है लेकिन कितने दिन तक सत्र चलेगा इसकी गारंटी कोई भी राजनैतिक दल नहीं दे सकता..
उत्तराखंड की जनता की भावनाओं का केंद्र लेकिन राजनीतिक दलों के लिए अब तक केवल राजनीति का मुद्दा बन कर रह गया है , वर्ष 2014 में कांग्रेस सरकार के समय पहली बार यहां विधानसभा सत्र टेंट में आयोजित हुआ था..इसके बाद से 2025 तक यानी 11 सालों में गैरसैंण में 10 बार सत्र हुए, लेकिन कुल मिलाकर सिर्फ 35 दिन ही सदन चला..
इतिहास में यह पहली बार हुआ जब करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद बिना किसी मुद्दे पर चर्चा किए सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गई।. राजनीतिक दल जहां जनता को गैरसैंण से उम्मीदों के सपने दिखाते हैं, वहीं प्रशासनिक अमला हर सत्र के बाद देहरादून का रुख कर लेता है।
इसी को लेकर अब सवाल खड़े हो रहे हैं और कांग्रेस व भाजपा में आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है। कांग्रेस नेता गैरसैंण की अनदेखी का आरोप लगाते हुए इसे भाजपा की रणनीति बता रहे हैं।
वहीं भाजपा का कहना है कि गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। लेकिन विपक्ष की हरकतों से ही सत्र नहीं चल पाता।
वैसे तो गैरसैण दो शब्दों से मिलकर बना एक शब्द है जो उत्तराखंड के लोगों की भावना से जुड़ा है लेकिन सत्ता में बैठे लोग इसे केवल एक शब्द यानी गैर ही समझते हैं यही कारण है कि जब भी यहां सत्र होता है तभी कुछ रौनक इस क्षेत्र में देखने को मिलती है लेकिन मौजूदा मानसून सत्र में जो कुछ हुआ उससे तो यही लगता है कि गैरसैण वाकई इन सत्ताधारी दलों के लिए गैर रही है ।
अगर ऐसा नहीं होता तो सत्र अपनी अवधि को पूरा जरूर करता और सत्र के बाद गैरसैण से अधिकारियों को 6 महीने तक काम करने का अध्यादेश जारी किया जाता जिससे ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण का सही मतलब भी निकलता।