उत्तराखंड परिवहन निगम में एक विवादास्पद मामला सामने आया है, जिसमें एक सामूहिक दुष्कर्म के आरोपी परिचालक को लिपिक बनाने की सिफारिश की गई है। यह घटना अधिकारियों की नादानी या लापरवाही का गंभीर उदाहरण बन गई है, जिससे जांच की आवश्यकता महसूस हो रही है। यह मामला एक ग्रामीण डिपो का है, जहां सहायक महाप्रबंधक (एजीएम) ने लिपिकीय कार्य के लिए 15 नियमित परिचालकों की एक सूची जारी की। आश्चर्यजनक रूप से, इस सूची में एक आरोपित परिचालक राजेश सोनकर का नाम भी शामिल है, जो वर्तमान में जेल में बंद है। इस सिफारिश ने न केवल परिवहन निगम के कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं, बल्कि यह भी दर्शाता है कि जिम्मेदार अधिकारियों ने कितनी गंभीरता से अपने कर्तव्यों का पालन किया।
इस मामले ने एक बार फिर से यह सवाल खड़ा किया है कि क्या प्रशासनिक अधिकारी इस प्रकार की गंभीर घटनाओं को नजरअंदाज कर सकते हैं। सामूहिक दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध के आरोपी को लिपिक के पद पर नियुक्त करने की सिफारिश करना न केवल असामान्य है, बल्कि यह समाज में गलत संदेश भी भेजता है। राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने इस मामले की निंदा की है और अधिकारियों से मांग की है कि इस स्थिति की पूरी जांच की जाए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि ऐसे मामलों में जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
उत्तराखंड परिवहन निगम में यह मामला स्पष्ट करता है कि प्रशासनिक दक्षता और संवेदनशीलता की आवश्यकता कितनी महत्वपूर्ण है। आरोपी के नाम को लिपिकीय कार्य की सूची में शामिल करना एक गंभीर त्रुटि है, जिसके परिणामस्वरूप न केवल परिवहन निगम की छवि पर असर पड़ेगा, बल्कि समाज में भी सुरक्षा और न्याय का सवाल उठेगा। अधिकारियों को चाहिए कि वे अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से लें और इस मामले की जांच में तात्कालिकता बरतें।