YogeshBhatt : सूचना आयोग को “पुनर्वास केंद्र” नहीं, सुधार केंद्र के रूप में किया स्थापित :- वरिष्ठ पत्रकार, राज्य आंदोलनकारी से लेकर राज्य सूचना आयुक्त तक का योगेश भट्ट का सफर महज़ एक पद यात्रा नहीं, बल्कि सिद्धांतों, साहस और सार्वजनिक सरोकारों की जीवंत मिसाल है।
तुलसी के पत्तों का पानी पीने के फायदे
सूचना आयोग जैसे संवेदनशील और अक्सर “फाइलों में दबे” माने जाने वाले संस्थान को उन्होंने अपने फैसलों से न केवल सक्रिय बनाया, बल्कि उसे आम नागरिक की आवाज़ का सशक्त मंच भी बनाया।आख़िरी दिन तक वे दफ़्तर में सक्रिय दिखे।
उनके सामने आए हर मामले की सुनवाई हुई। एक भी अपील या शिकायत पेंडिंग नहीं छोड़ी गई। समयबद्ध फैसले, स्पष्ट आदेश और कठोर रुख उनकी कार्यशैली की पहचान रहे। सूचना आयोग में उन्होंने कामकाजी संस्कृति को अपने व्यक्तिगत उदाहरण से स्थापित किया।
अपने तीन वर्षों के कार्यकाल में योगेश भट्ट ने सूचना अधिकार कानून को काग़ज़ी औजार बनने से बाहर निकाला। 1480 से अधिक अपीलों व शिकायतों का निस्तारण, हज़ारों सुनवाइयों और करोड़ों रुपये के दंड—ये सिर्फ आँकड़े नहीं, बल्कि ब्यूरोक्रेसी को जवाबदेह बनाने का ठोस रिकॉर्ड हैं।
नगर निगम की गुम फाइलें हों या वर्षों से रुकी पेंशन, फर्जी डिग्रियां हों या निजी अस्पतालों की जवाबदेही, सरकारी योजनाओं में अनियमितता हों या सूचना छिपाने की प्रवृत्ति—योगेश भट्ट के आदेशों ने व्यवस्था की नींद तोड़ने का काम किया।
सबसे अहम बात यह रही कि उन्होंने सूचना आयोग को “पुनर्वास केंद्र” नहीं, सुधार केंद्र के रूप में स्थापित किया। जहां कई आयोग पद के बाद विश्राम का ठिकाना बन जाते हैं, वहीं योगेश भट्ट ने अपने निर्णयों से यह साबित किया कि यदि इच्छाशक्ति हो, तो आयोग ब्यूरोक्रेसी का आईना बन सकता है। उनके आदेशों से नागरिकों को राहत मिली और विभागों को कानून के अनुरूप काम करने की स्पष्ट दिशा मिली।
योगेश भट्ट ने अपनी एक अलग और सशक्त स्लग छवि गढ़ी—न दबाव में आने वाले, न दिखावे में रहने वाले। साफ़, तर्कपूर्ण और कानून सम्मत फैसलों ने उन्हें उस आयोग में एक नजीर बना दिया, जिसे अक्सर औपचारिकता का मंच समझा जाता था।
आज जब उत्तराखंड में जवाबदेही, पारदर्शिता और सूचना अधिकार की बात होती है, तो एक नाम स्वतः सामने आता है—राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट का। यही उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है। 3 साल का उनका कार्यकाल पूरा हो गया।
