भारत के सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की एक नई मूर्ति स्थापित की गई है, जिसमें महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। इस नई मूर्ति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसकी आंखों में पट्टी नहीं बंधी है। इसके एक हाथ में पारंपरिक तराजू है, जबकि दूसरे हाथ में तलवार की जगह अब भारत के संविधान की किताब है।
भारत के चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने इस मूर्ति में बदलाव करने का निर्णय लिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि मूर्ति से पट्टी हटाने का उद्देश्य यह है कि भारत का कानून अंधा नहीं है। यह मूर्ति सुप्रीम कोर्ट के जजों की लाइब्रेरी में रखी गई है और इसे कुछ महीने पहले ही स्थापित किया गया है।
पहले की मूर्ति में आंखों पर पट्टी बंधी हुई थी, जिसका मतलब था कि कानून सभी के लिए समान है और सभी के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाता है। हाथ में तलवार कानून की ताकत का प्रतीक थी, जो गलत काम करने वालों को सजा देने की क्षमता को दर्शाता था। हालांकि, नई मूर्ति में इन दोनों प्रतीकों को बदल दिया गया है, जबकि हाथ में तराजू को बरकरार रखा गया है, जो संतुलन और निष्पक्षता का प्रतीक है।
न्याय की देवी वास्तव में यूनान की देवी जस्टिया से प्रेरित है। इसका नाम ‘जस्टिस’ शब्द से आया है। आंखों में पट्टी बंधी होने का यह संकेत है कि न्याय किसी को देखकर नहीं किया जाता। 17वीं शताब्दी में अंग्रेज अफसरों द्वारा इस मूर्ति को भारत में लाया गया था, और 18वीं सदी में ब्रिटिश राज के दौरान इसका व्यापक उपयोग होने लगा। भारत की आजादी के बाद भी इसका उपयोग जारी रहा।