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Home » माँ नंदा देवी की राजजात यात्रा की मान्यता
उत्तराखंड

माँ नंदा देवी की राजजात यात्रा की मान्यता

The heritage of Devbhoomi Uttarakhand is so vast that it seems insufficient no matter how much is written and read about it.
Narad PostBy Narad PostMarch 19, 2025Updated:March 19, 2025No Comments3 Mins Read
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माँ नंदा देवी
माँ नंदा देवी
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माँ नंदा देवी की राजजात यात्रा की मान्यता : देवभूमि उत्तराखंड की विरासत इतनी विशाल है कि उसे जितना लिखा और पढ़ा जाए कम ही लगता है । यहां पंच केदार , पंच प्रयाग और पंच बदरी अपने नैसर्गिक स्वरूप में विद्यमान हैं। साल भर अनेकों मेले और धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन होता है इसी में सम्मिलित है माँ नंदा देवी की राजजात यात्रा … लोक इतिहास के अनुसार नन्दा देवी गढ़वाल के राजाओं के साथ-साथ कुँमाऊ के कत्युरी राजवंश की ईष्टदेवी थी। इष्टदेवी होने के कारण नन्दा देवी को राजराजेश्वरी कहकर सम्बोधित किया जाता है। नन्दा देवी को पार्वती की बहन के रूप में देखा जाता है परन्तु कहीं-कहीं नन्दादेवी को ही पार्वती का रूप माना गया है।

मान्यता है कि एक बार नंदा अपने मायके आई थीं। लेकिन किन्हीं कारणों से वह 12 वर्ष तक ससुराल नहीं जा सकीं। बाद में उन्हें आदर-सत्कार के साथ ससुराल भेजा गया। मां नंदा को उनकी ससुराल भेजने की यात्रा ही है राजजात यात्रा। मां नंदा को भगवान शिव की पत्नी माना जाता है और कैलाश (हिमालय) भगवान शिव का निवास।इस यात्रा में चमोली जिले में पट्टी चांदपुर और श्रीगुरु क्षेत्र को मां नंदा का मायका और बधाण क्षेत्र (नंदाक क्षेत्र) को उनकी ससुराल माना जाता है। माँ नन्दा भगवान शिव भोलेनाथ की अर्धांगिनी और उत्तराखंड हिमालय की पुत्री हैं, वह इस यात्रा के माध्यम से अपने ससुराल यानी कैलाश पर्वत जाती हैं। हर साल भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन यह यात्रा आरंभ होती है।

इस यात्रा में चौसिंग्या खाडू़ (चार सींगों वाला भेड़) का विशेष महत्व है जोकि स्थानीय क्षेत्र में राजजात का समय आने के पूर्व ही पैदा हो जाता है। उसकी पीठ पर रखे गये दोतरफा थैले में श्रद्धालु गहने, श्रंगार-सामग्री व अन्य हल्की भैंट देवी के लिए रखते हैं, जोकि होमकुण्ड में पूजा होने के बाद आगे हिमालय की ओर प्रस्थान कर लेता है। लोगों की मान्यता है कि चौसिंग्या खाडू़ आगे हिमालय की पर्वत सृंखलाओं में जाकर लुप्त हो जाता है व नंदादेवी के क्षेत्र कैलाश में प्रवेश कर जाता है।

समुद्रतल से 3200 फुट से लेकर 17500 फुट की ऊंचाई तक पहुंचने वाली यह 280 किमी लम्बी पदयात्रा 19 पड़ावों से गुजरती है। सम्पूर्ण यात्रा 19 दिनों तक चलती है और अंतिम पड़ाव होमकुण्ड पहुंचती है। इस कुण्ड में पिण्डदान और पूजा अर्चना के बाद चौसिंग्या खाडू को हिमालय की चोटियों की ओर विदा करने के बाद यात्रा नीचे उतरने लगती है। उसके बाद यात्रा सुतोल, घाट और नौटी लौट आती है।

अगली नंदा देवी की यात्रा 2026 में होगी

कई दिन इस यात्रा मे लगते है , और लगभग 6 लाख लोग इस यात्रा के साक्षी बनते है , इस यात्रा को दुनियाभर मे हिमालयन कुम्भ के नाम से जाना जाता है , ये उत्तराखंड की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है , उत्तराखंड की 3 संस्कृतियां गढ़वाली कुमाऊनी जौनसारी का ये संगम है , नंदा तीनों लोगो की आराध्य देवी है , इस यात्रा के एक पड़ाव मे रूप कुंड एक जगह आती है जहाँ हज़ारों नर कंकाल आज भी मिलते है , नंदा देव की यात्रा अब तक 10 बार हो चुकी हैं। हिमालय क्षेत्र का यह महाकुंभ साल 1843, 1863, 1886, 1905, 1925, 1951, 1968, 1987, 2000 और 2014 हो चुकी है। नंदा देवी की अगली यात्रा 2026 में होगी।

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