12 ज्योतिर्लिंगों के अनसुने रहस्य: साल 2025 का सावन मास 11 जुलाई, शुक्रवार से शुरू हो चुका है। इस महीने में प्रमुख शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। इन सभी मंदिरों में 12 ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व है। ये सभी 12 ज्योतिर्लिंग देश के अलग-अलग स्थानों पर स्थित है और इन सभी के साथ रहस्य जुड़े हुए हैं। सावन के पहले दिन जानें इन ज्योतिर्लिंगों से जुड़े खास रहस्य…
गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित है सोमनाथ ज्योतिर्लिंग। इसे भारत का ही नहीं बल्कि पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी, उन्हीं के नाम (सोम) पर इस ज्योतिर्लिंग का नाम सोमनाथ पड़ा। कालांतर में इस मंदिर को कईं बार तोड़ा गया लेकिन इस ज्योतिर्लिंग को कोई नष्ट नहीं कर पाया।
12 ज्योतिर्लिंगों में दूसरे स्थान पर है मल्लिकार्जुन। ये ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित है। मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस ज्योतिर्लिंग को शिव और पार्वती का साक्षात स्वरूप माना जाता है।
मध्य प्रदेश के उज्जैन में 12 में से तीसरा ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है कि ये एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। दक्षिणा दिशा यम यानी काल की है। काल के स्वामी होने के कारण ही इस ज्योतिर्लिंग महाकाल कहा जाता है। महाकाल के दर्शन और पूजन से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है। यहां होने वाली भस्मारती विश्व प्रसिद्ध है।
मध्य प्रदेश में इंदौर से कुछ दूरी पर स्थित है ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग। ये ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। यहां नर्मदा नदी पहाड़ी के चारों ओर बहते हुए ऊं का आकार बनाती है। इस ज्योतिर्लिंग से अनेक मान्यताएं और परंपराएं जुड़ी हैं जो इसे और भी खास बनाती हैं।
उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहां अनेक प्राचीन मंदिर है, इन्हीं में से एक है केदारनाथ। इस ज्योतिर्लिंग तक पहुंचने के लिए कठिन रास्ता पार करना होता है। केदारनाथ का महत्व स्कंद एवं शिवपुराण में भी मिलता है। जिस प्रकार भगवान शिव को कैलाश प्रिय है, वैसा ही महत्व केदार क्षेत्र का भी माना गया है।
महाराष्ट्र के पुणे जिले में सह्याद्रि पर्वत पर छठा ज्योतिर्लिंग है, इसे भीमाशंकर के नाम से जाना जाता है। शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव इसी स्थान पर रावण के छोटे भाई कुंभकर्ण के पुत्र भीम नाम के राक्षस का वध किया था। जो भक्त प्रतिदिन यहां दर्शन-पूजन करता है, उसके सात जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं।
सप्तपुरियों में से एक काशी उत्तर प्रदेश की धार्मिक राजधानी है। यहां 12 ज्योतिर्लिंगों में से विश्वनाथ स्थित है। काशी को भगवान शिव का घर कहा जाता है। मान्यता है विवाह के बाद भगवान शिव देवी पार्वती ब्याह कर यहीं लाए थे। ऐसा भी कहा जाता है कि प्रलय आने पर भी काशी नष्ट नहीं होगी क्योंकि महादेव स्वयं इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे। इस ज्योतिर्लिंग से जुड़ी और भी कईं मान्यताएं इसे और खास बनाती हैं।
महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले में गोदावरी नदी के तट पर त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। इसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानी शिव का स्वरूप माना जाता है। भगवान शिव का एक नाम त्र्यंबकेश्वर भी है। शिवपुराण के अनुसार गौतम ऋषि और गोदावरी नदी के अनुरोध पर भगवान शिव यहां ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए थे। दूर-दूर से लोग यहां कालसर्प दोष की पूजा करवाने आते हैं। गोदावरी नदी के तट पर ही कुंभ मेला आयोजित होता है।
12 ज्योतिर्लिंगों में नौवां है वैद्यनाथ। ये झारखंड के देवघर जिले में स्थित है। मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं राक्षसों के राजा रावण ने की थी। यहां पूजन-दर्शन करने वालों की हर मनोकामना पूरी होती है, इसलिए इसे कामना लिंग भी कहा जाता है। आमतौर पर भगवान शिव के मंदिरों में त्रिशूल होता है लेकिन एकमात्र इसी ज्योतिर्लिंग पर पंचशूल स्थापित है।
गुजरात के द्वारिका क्षेत्र में स्थित है नागेश्वर ज्योतिर्लिंग। नागेश्वर का पूर्ण अर्थ है नागों का ईश्वर। इस ज्योतिर्लिंग से भी कईं रोचक कथाएं और मान्यताएं जुड़ी हैं। कहते हैं जो व्यक्ति यहां सच्चे मन से दर्शन और पूजन करता है, उसके सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं और मृत्यु के बाद उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
12 में से 11वां ज्योतिर्लिंग है रामेश्वरम, जो तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरं नामक स्थान पर स्थित है। ज्योतिर्लिंग होने के साथ-साथ यह स्थान हिंदुओं के चार धामों में से एक भी है। इस ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा जाता है कि इसकी स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी। उन्हीं के नाम पर इस ज्योतिर्लिंग का नाम रामेश्वरम पड़ा। दूर-दूर से लोग यहां दर्शन करने आते हैं।
12 ज्योर्तिर्लिंगों में अंतिम है घृष्णेश्वर। इसे घृसणेश्वर या घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। ये ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद के निकट दौलताबाद में स्थित है। इस मंदिर से नजदीक ही बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएं भी हैं। इस ज्योतिर्लिंग का महत्व स्कंद और शिव पुराण में बताया गया है। मंदिर के पास में ही श्रीएकनाथजी गुरु व श्रीजनार्दन महाराज की समाधि भी है।