गाड़ियों के टायर काले क्यों होते हैं : लोग अक्सर सोचते हैं कि जब रबर सफेद होती है तो टायर काले क्यों होते हैं. जबकि गाड़ियों के रंग को लेकर लोग इतने सजग रहते हैं कि पसंदीदा रंग के लिए महीनों इंतजार करते हैं. टायर का काला रंग उसकी मजबूती और संरचना से जुड़ा होता है, न कि सिर्फ दिखावे से।
अक्सर टायरों को देखकर ये सवाल जरूर आता है कि जब रबर सफेद रंग की होती है, तो टायर हमेशा काले ही क्यों बनाए जाते हैं. खासतौर पर जब रंगों को लेकर लोग इतने संवेदनशील होते हैं कि वे कार का कलर चुनने के लिए लंबा इंतज़ार तक कर लेते हैं. ऐसे में टायर का सिर्फ काले रंग में ही आना एक दिलचस्प बात है, जिसका कारण टायर की बनावट से जुड़ा हुआ है।
असल में, टायरों की मजबूती और टिकाऊपन बढ़ाने के लिए रबर में ‘कार्बन ब्लैक’ नामक एक तत्व मिलाया जाता है, जिसका रंग काला होता है. यही कारण है कि टायरों का रंग भी काला हो जाता है. बहुत कम लोग जानते हैं कि करीब 125 साल पहले जब सबसे पहले रबर के टायर बनाए गए थे, तब वे सफेद रंग के होते थे, क्योंकि उस समय इस्तेमाल में लाई गई रबर प्राकृतिक रूप से दूधिया सफेद रंग की होती थी।
टायर और सड़क का रंग काला रखने के पीछे एक अहम कारण यह है कि चलने और घिसने के बाद भी उनका रंग आसानी से नहीं बदलता. अगर टायर का रंग समय के साथ फीका पड़ जाए या अलग दिखने लगे, तो गाड़ी का पूरा लुक खराब लग सकता है. सोचिए, आपने बड़ी मेहनत से नई कार खरीदी और कुछ ही समय बाद उसके टायर रंग बदलने लगे, यह देखने में बिल्कुल अच्छा नहीं लगेगा. इसलिए टायरों को काले रंग में ही बनाया जाता है. इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी होते हैं, जिनका जिक्र पहले किया गया है।
व्यवहारिक रूप से देखा जाए तो अगर टायरों के रंग लाल या पीले जैसे चटक होते, तो न सिर्फ वो सड़क के रंग से मेल नहीं खाते, बल्कि आंखों को भी चुभते, जिससे ड्राइवर का ध्यान भटक सकता था. वहीं, टायर की सतह पर बने खांचे सड़क पर उसकी पकड़ को मजबूत बनाते हैं. ये खांचे घर्षण बढ़ाते हैं, जिससे टायर फिसलता नहीं और गाड़ी स्थिर रहती है. हालांकि, जैसे-जैसे टायर घिसते हैं, उनकी पकड़ भी धीरे-धीरे कम होने लगती है।