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Home » जन्माष्टमी पर क्यों निभाई जाती है डंठल वाले खीरा काटने की परंपरा
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जन्माष्टमी पर क्यों निभाई जाती है डंठल वाले खीरा काटने की परंपरा

After the umbilical cord is pierced, Aarti of Lord Krishna is performed, cucumber is offered in worship and finally it is distributed among the devotees as prasad.
Narad PostBy Narad PostAugust 15, 2025No Comments2 Mins Read
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जन्माष्टमी
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जन्माष्टमी पर क्यों निभाई जाती है डंठल वाले खीरा काटने की परंपरा :- कृष्ण जन्माष्टमी, भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का पर्व, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इस साल यह उत्सव शनिवार, 16 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा. मध्यरात्रि को श्रीकृष्ण का जन्म हुआ माना जाता है, और इसी समय विशेष पूजा के साथ-साथ एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है, डंठल वाला खीरा काटना।

आधी रात खीरा काटने की परंपरा

जन्माष्टमी की रात 12 बजे डंठल वाला खीरा सिक्के से काटा जाता है. यह प्रक्रिया प्रतीकात्मक रूप से शिशु के जन्म के समय गर्भनाल काटने जैसी मानी जाती है. मान्यता है कि खीरे का डंठल भगवान कृष्ण के गर्भनाल का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे काटकर उन्हें माता देवकी से अलग करने की रस्म निभाई जाती है।

धार्मिक मान्यता और प्रतीक

इस परंपरा को “नाल छेदन” कहा जाता है. खीरे से श्रीकृष्ण की छोटी मूर्ति को बाहर निकालना उनके जन्म और मातृगर्भ से अलग होने का प्रतीक है. यह रस्म जन्म के पवित्र क्षण को पुनः जीवंत करने और भक्तों को उससे जुड़ाव महसूस कराने के लिए की जाती है।

पूजा में खीरे का महत्व

नाल छेदन के बाद श्रीकृष्ण की आरती की जाती है, खीरे को पूजन में चढ़ाया जाता है और अंत में इसे प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित किया जाता है. इस खीरे को शुभता, पवित्रता और श्रीकृष्ण के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है. जन्माष्टमी पर डंठल वाला खीरा काटने की परंपरा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि श्रीकृष्ण के जन्म की स्मृति को संजोए रखने और उस क्षण के आध्यात्मिक महत्व को महसूस करने का माध्यम है. यह रस्म आज भी हर वर्ष श्रद्धा और भक्ति के साथ निभाई जाती है।

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