देवभूमि के लक्ष्मण सिद्ध पीठ का रहस्य: देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में परमात्मा का वास है. देहरादून में चार सिद्ध मंदिर या पीठ स्थित हैं और यह शहर के चारों कोनों में स्थापित है. देहरादून के इन 4 सिद्ध पीठ में लक्ष्मण सिद्ध, कालू सिद्ध, मानक सिद्ध और मांडु सिद्ध हैं. मुख्य शहर से करीब 12 किमी दूर हर्रावाला में जंगलों के बीच प्राचीन लक्ष्मण सिद्ध मंदिर स्थित है, जो ऋषि दत्तात्रेय के 84 सिद्धपीठों में से एक है. मान्यता है कि रामायण काल में भगवान श्रीराम के भाई छोटे लक्ष्मण ने मेघनाद का वध किया था. जिसके बाद ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए इसी मंदिर में आए थे और उन्होंने संत के रूप में तपस्या की थी.
प्राचीन काल से ही जल रही धूनी
हम सभी जानते हैं कि रावण जाति से ब्राह्मण था और लक्ष्मण ने उसके बेटे मेघनाद का वध किया था. जिसके बाद उन्हें ब्रह्महत्या का दोष लग गया था. कुछ विद्वान संत-तपस्वियों से उन्हें इस जगह पर तपस्या करने की सलाह दी रही. उन्होंने कुछ वर्षों तक ऐसा ही किया. रविवार के दिन यहां भक्तों का तांता लग जाता है. यहां हजारों साल से जल रही प्राचीन धूनी की राख को प्रसाद के तौर पर श्रद्धालुओं में वितरित किया जाता है. यहां आकर लोग चुनरियाँ बांधकर मनोकामना मांगते हैं, जो पूर्ण होती हैं.
लक्ष्मण सिद्ध मंदिर अपने धार्मिक महत्व और सुंदर सौंदर्य के लिए भी काफी प्रसिद्ध है | लक्ष्मण सिद्ध मंदिर के बारे में यह कहा जाता है कि यह सिद्धपीठ ऋषि पीठ ऋषि दत्तात्रेय के चोरासी सिद्धों में से एक है | यह देहरादून में अवस्थित चार सिद्धपीठों में से यह सिद्ध पीठ सर्वश्रेष्ठ है एवम् लोक मान्यता के अनुसार यह मंदिर राजा दशरथ के पुत्र “लक्ष्मण व राम “ के द्वारा रावण का वध करने के पश्चात ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए भगवान लक्ष्मण ने इसी स्थान पर तपस्या की थी इसलिए इस मंदिर का नाम “लक्ष्मण सिद्धपीठ मंदिर” रखा गया |
पौराणिक कथा के अनुसार संत -स्वामी लक्ष्मण सिद्ध ने इस स्थान पर तपस्या की थी और इसी स्थान पर संत ने समाधि ली थी | इस सिद्धपीठ से 400 मीटर की दूरी पर एक कुआ भी स्थापित है | इस कुए के बारे में यह माना जाता है कि कुए का पानी प्राचीन काल में दूध के रूप में निकलता था | लक्ष्मण जी ने अपने तीर से कुए में पानी निकाला था क्योंकि उस समय इस कुएं में पानी नहीं था | सिद्धपीठ में शिवलिंग की स्थापना की गई है और भक्तगण शिवलिंग की उपासना करते हैं | प्राचीन काल से इस मंदिर में एक अखंड धुना है जो कि प्राचीन काल या त्रेता युग से इस मंदिर में स्थापित है
इस धुनें की राख को प्रसाद स्वरूप सभी श्रद्धालुगण को बांटा जाता है | लोगों की आस्था का केंद्र होने के साथ-साथ यह मंदिर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है , जिस कारण श्रद्धालुओं व पर्यटकों का आकर्षण इस क्षेत्र में बढ़ रहा है | इस मंदिर पर गुड , घी , दही आदि भेंट के रूप में चढ़ाया जाता है क्योंकि पुराने समय में गुड एवं अन्य सामग्री मिठाई होती थी इसलिए प्राचीन काल से गुड़ का प्रसाद इस मंदिर में चढ़ाया जाता है | लक्ष्मण सिद्ध मंदिर में जो कोई भी श्रद्धालु या भक्त सच्चे मन से बाबा मंदिर के चरणों के समीप बैठ कर मनोकामना करता है , श्रद्धा और विश्वास के द्वारा वह मनोकामना पूर्ण हो जाती है |