माँ दुर्गा के विकराल रूप देवी कालरात्रि की कथा: माता का ये शक्तिशाली रूप देखने में अत्यंत भयंकर है परंतु ये अपने भक्तों को हमेशा शुभ फल प्रदान करती हैं, इसलिए इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। इनका वर्ण काला है व तीन नेत्र हैं, मां के केश खुले हुए हैं और गले में मुंड की माला धारण करती हैं। ये गदर्भ (गधा) की सवारी करती हैं। ये दुष्टों का संहार करती हैं। इनके नाम का उच्चारण करने मात्र से बुरी शक्तियां भयभीत होकर भाग जाती हैं। मां कालरात्रि को कालिका देवी यानी काली माता के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है।
आईये यहाँ पढ़तें हैं देवी कालरात्रि की कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार दैत्य शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज ने अपना आतंक तीनों लोकों में फैलाना शुरू कर दिया था। उस वक्त सभी देवगन, भगवान शिव के पास गए। जब भगवान शिव ने सभी देवताओं को चिंतित देखा, तो उनसे उनकी चिंता का कारण पूछा। तब देवताओं ने शिव शंकर से कहा “हे भोलेनाथ, शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज नामक दानवों ने अपने उत्पाद से हम सभी को परेशान कर रखा है। कृपया कर हमारी मदद करें।” यह सुनते ही भोलेनाथ ने अपने समीप बैठी माता पार्वती की ओर देखा और उनसे, उन दानवों का वध करने की प्रार्थना की।
माता पार्वती ने दानवों का वध करने के लिए, मां दुर्गा का रूप धारण किया। इस रूप में वह सिंह पर सवारी करती हुईं अति मनमोहक और शक्तिशाली प्रतीत हो रही थी । माता को देख सभी राक्षस अचंभित हो गए। उन तीनों ने माता के साथ एक घमासान युद्ध शुरू किया। दैत्यों ने अपना पूरा बल लगा दिया, परंतु माता के सामने नहीं टिक पाए। आदिशक्ति ने शुंभ और निशुंभ का वध कर दिया। इसके पश्चात, मां ने रक्तबीज के साथ युद्ध करना शुरू किया।
रक्तबीज कोई मामूली दानव नहीं था। उसने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान हासिल किया था। ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दिया था, कि जब भी उसे कोई मारने का प्रयत्न करेगा, तब उसके शरीर से निकली खून की बूंदें जैसे ही धरती को स्पर्श करेगी, वैसे ही अनेक रक्तबीजों का जन्म होगा। इसी वरदान के अनुसार, जैसे ही माता ने उस पर प्रहार किया, उसकी खून की बूंदे धरती पर गिरीं और अत्यंत रक्तबीज प्रकट हो गए।उसी क्षण माता ने कालरात्रि का रूप धारण किया। मां दुर्गा के शरीर से एक ऊर्जा का संचार हुआ और मां कालरात्रि का निर्माण हुआ। भले ही वो दानव अति शक्तिशाली था, परंतु माता से जीत पाने का सामर्थ्य उसके अंदर नहीं था।
मां कालरात्रि ने रक्तबीज को अपनी कटार से मार गिराया और जैसे ही उसके शरीर से खून बहने लगा, उन्होंने उसका रक्त पान कर लिया।मां कालरात्रि की पूजा, सप्तमी के दिन करने के पीछे भी एक बहुत बड़ा कारण है। कहा जाता है, कि 6 दिन देवी की पूजा करने के बाद सातवें दिन हमारा मन सहस्त्रर चक्र में स्थित होता है। इस चक्र में हमारा मन सबसे साफ और शुद्ध स्थिति में होता है। इस वक्त कालरात्रि की पूजा करने से हमें ब्रह्मांड की सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है और सारी असुरी शक्तियां हमसे दूर भाग जाती हैं।