पर्याप्त नींद न लेना इंसान के सोचने, समझने और तर्क क्षमता पर असर डालता है। 45 साल से अधिक उम्र के वयस्कों का चार घंटे से कम और नौ घंटे से अधिक नींद लेना, दोनों ही स्थिति उनकी सोचने- समझने की क्षमता को नकारात्मक तरीके से प्रभावित करती हैं। ऐसे लोगों में डिमेंशिया जैसी बीमारी का खतरा अधिक होता है। देश के 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 14 हजार लोगों पर हुए अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है। यह अध्ययन एम्स दिल्ली, पीजीआई चंडीगढ़ और जिपमेर पांडिचेरी जैसे मशहूर मेडिकल संस्थानों के डॉक्टरों ने किया है। डॉक्टरों ने अध्ययन में पुरुषों और महिलाओं से उनके सोने तथा उठने के समय का पता लगाया।
इसके बाद, छह वैज्ञानिक पैमानों पर उनकी बुद्धि और समझ की जांच की, जिसमें पता चला कि जो लोग चार घंटे से भी कम नींद ले रहे थे, उनकी बुद्धि, सोचने और तर्क क्षमता कम पाई गई। नौ घंटे से ज्यादा सोने वालों पर भी इसका नकारात्मक असर देखा गया। सोते समय कोशिकाएं अपनी मरम्मत करतीं हैं।
इस दौरान हमारा दिमाग शॉर्ट टर्म मेमोरी से चीजों को लॉन्ग टर्म मेमोरी में ट्रांसफर करता है। इस वजह से भरपूर नींद हमारे दिमाग के काम के लिए जरूरी होती है। नींद के दौरान जब हमारा शरीर आराम करता है, तो मस्तिष्क दिनभर की जानकारी को संसाधित करने और यादें बनाने में व्यस्त रहता है। पर्याप्त नींद न लेने से ध्यान में कमी, याददाश्त कमजोर होना, रिएक्शन टाइम धीमा होना, सवाल हल करने में दिक्कत आना जैसी कई परेशानियां हो सकती हैं।
नवजात और बच्चों के लिए कितनी नींद जरूरी
नवजात शिशु : प्रतिदिन 14-16 घंटे
शिशु : प्रतिदिन 12-16 घंटे (झपकी सहित)
छोटे बच्चे प्रतिदिन 11-14 घंटे (झपकी सहित)
प्रीस्कूलर : प्रतिदिन 10-13 घंटे (झपकी सहित)
स्कूली बच्चे प्रति रात 9-12 घंटे
किशोर प्रति रात्रि 8-10 घंटे
इन बातों का ध्यान रखें
देर रात चीनी, कैफीन, शराब से बचें।
टीवी, कंप्यूटर, मोबाइल, लैपटॉप जैसे उपकरण बेडरूम में न रखें।
अंधेरे कमरे में सोएं, जागने के लिए अलार्म घड़ी का उपयोग करें।
रोजाना एक ही समय पर सोने और जागने का प्रयास करें।
सप्ताहांत के लिए भी रूटीन बनाएं।