रोटी, चावल, सब्जियां , कढ़ी और राजमा के बीच आज बात दाल की करेंगे। ये तो आप जानते ही है कि हमारे देश में आज दाल की दर्जनों वैरायटीज मौजूद है, जिसे अलग लग राज्यों में लोग अपनी पसंद के हिसाब से बनाना और खाना पसंद करते हैं। कई लोग दाल को मजेदार तरीके से बनाते हैं जैसे दाल मखनी। दाल मखनी के ऊपर से मक्खन डालकर नान के साथ सर्व की जाती है।कई दाल तो ऐसी हैं जिन्हें एक नहीं बल्कि कई तरह से इस्तेमाल किया जाता है जैसे- मूंग की दाल। मूंग की दाल से कई तरह के स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं, जिससे हलवा, दही भल्ले और भी ना जाने क्या-क्या….
अगर कभी आपके मन में यह सवाल आया है कि आपकी थाली को संवारने और आपकी भूख को मिनटों में कम करने वाली दाल आखिर कहां से आई, आखिर कैसे यह स्वादिष्ट दाल हमारी थाली का हिस्सा बनी और लोगों ने इसका इस्तेमाल करना शुरू किया।आपको इन सवालों के जवाब मिलेंगे, बस हमारा पूरा लेख पढ़ें और दाल का रोचक इतिहास जानें। तो देर किस बात की आइए विस्तार से जानते हैं।
मूंग की दाल दो तरह की होती है, जिसमें से एक का कलर पीला और एक का हरा और दोनों ही दाल का इस्तेमाल अलग-अलग व्यंजन बनाने के लिए किया जाता है। बता दें कि मूंग की दाल खाने में बेहद स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरपूर होती है। इसमें कैलोरी की मात्रा बहुत कम होती है जो वजन को नियंत्रित करने में बहुत उपयोगी मानी जाती है।
कहा जाता है कि मूंग की दाल को सबसे पहले भारत में ही बनाया गया था। इसकी पैदावार भारत में ही शुरू हुई और आगे बढ़ी। बता दें बात लगभग तीन हजार साल पुरानी है, जब मूंग दाल जिक्र मिला। यह जिक्र आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ था।इसमें दाल की खिचड़ी और सूप के बारे में बताया गया है। कहा जाता है कि भारत में सबसे पहले मूंग दाल पैदा हुई और ईसा पूर्व 2200 ईस्वी में इसकी खेती शुरू हो चुकी थी। इसके अलावा, प्राचीन बौद्ध साहित्य में भी मूंग दाल का उल्लेख किया गया है। आज इस दाल को सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी बनाई और खाई जाने लगी है।
क्या आपको पता है कि शादियों में दाल बनाने की परंपरा नई नहीं है, बल्कि बहुत पुरानी है। कहा जाता है कि दाल चंद्रगुप्त मौर्य के समय से ही बनाई जाती थी, हालांकि इस बात को लेकर हमें थोड़ा डाउट है कि वो मूंग की दाल ही थी। पर इतना जरूर बता सकते हैं कि उस वक्त दाल को घूघनी के रूप में बनाया गया था। ये पूर्वी भारत के लोगों की शादियों में बनाई जाने वाली सैंकड़ों साल पुरानी परंपरा है, जिसे आज भी हमारे समाज में निभाई जा रही है ।