कुम्भ नगर में परमार्थ निकेतन शिविर में श्रीराम का अद्वितीय समागम : इटली से पधारे माहि गुरूजी और उनके अनुयायी, मंगलभवन अमंगलहारी से गूंजा पूरा परमार्थ निकेतन, श्री रामचन्द्र जी की स्थापना और महायज्ञ का दिव्य आयोजन, परमार्थ निकेतन शिविर महाकुम्भ की धरती पर अद्भुत, अलौकिक और ऐतिहासिक क्षण है, पूरा शिविर वेदमंत्रों से गूँज रहा है।पावन अवसर पर श्रीराम जी की दिव्य प्रतिमा की विधिवत स्थापना हुई जो कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का आदर्श प्रतीक है, यह विश्व भर से आने वाले श्रद्धालुओं को सनातन धर्म के अद्वितीय मूल्यों से जोड़ने हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा।
प्रभु श्रीराम का जीवन और उनके आदर्श, भारतीय संस्कृति के उच्चŸाम सोपान है। श्रीराम जी का व्यक्तित्व धर्म, न्याय, और मर्यादा का प्रतीक है। प्रभु श्रीराम की दिव्य, भव्य और अलौकिक प्रतिमा की विधिवत स्थापना भारतीय मूल्यों की स्थापना का प्रतीक है, जिससे आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार पूरे वातावरण हो रहा है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि प्रयागराज की पुण्यभूमि में प्रभु श्री राम जी की प्रतिमा की स्थापना केवल व्यक्तिगत उद्धार का माध्यम नहीं है, बल्कि समग्र समाज और राष्ट्र के निर्माण का स्रोत है।
श्रीराम जी का जीवन सनातन धर्म का आदर्श है जो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सत्य, धर्म और न्याय का मार्गदर्शन करने वाले सूर्य के समान हैं। स्वामी जी ने कहा कि कुम्भ महापर्व का सबसे बड़़ा संदेश है एकता और समरसता। परमार्थ निकेतन शिविर, सभी को जोड़ने और सभी से जुड़ने को प्राथमिकता देता है। चाहे वह कोई भी जाति, धर्म, रंग या स्थान से हो, यहाँ प्रत्येक व्यक्ति का स्वागत व अभिनन्दन है। यह शिविर हर व्यक्ति को यह महसूस कराता है कि हम सब एक ही ब्रह्म के अंश हैं और हमारे बीच कोई भेदभाव नहीं है। यहां पर सब समान, सब का सम्मान चाहे शबरी हो या निषादराज यहां सब का सम्मान है।
स्वामी जी ने कहा कि सनातन धर्म का मूल सिद्धांत ‘सब समान, सब का सम्मान’ पर आधारित है, जो न केवल भारतीय संस्कृति की नींव है, बल्कि समग्र मानवता के लिए एक अमूल्य धरोहर है और यही सनातन का संविधान भी है, जो हमें जीवन के हर क्षेत्र में एकता, प्रेम, और भाईचारे की भावना से जीने की प्रेरणा देता है। यह सनातन संविधान हमें सिखाता है कि धर्म, जाति, या किसी अन्य भेद के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। हम सभी को समान अधिकार और सम्मान प्राप्त है, और यही हमारी सांस्कृतिक विरासत है।