धन की देवी लक्ष्मी जी के वाहन उल्लू साहिब को झटपट पटा लीजिए, इस बार फिर लोग उल्लू महोदय को गोद लेने की अफरा तफरी में हैं चिड़ियाघर में उल्लू के खर्च उठाने के लिए उन्हें गोद दिया जाता है.
आपको अगर रातो रात बनना है अमीर और दौलत की चमक के हैं आप भी शौकीन तो धन की देवी लक्ष्मी जी के वाहन उल्लू साहिब को झटपट पटा लीजिये. गुणा गणित और किस्मत ने साथ दिया तो आपकी मुराद पूरी हो सकती है . ये दावा हम नहीं कर रहे हैं . लेकिन जैसे ही दीपावली नज़दीक आती है हमारे देश में रईस बनने के सपने देखने वाले मुंगेरीलालों को जैसे एक मौका हाँथ लग जाता है क्यूंकि इस दौरान वो महत्वकाक्षी लोग उल्लू खोजने लगते हैं . लेकिन इस बार कुछ अनोखा ही दिखाई दे रहा है . पहले जहाँ दीपावली पर बेचारे उल्लू को पकड़ने और चुराने की खबरें आती थी वहीँ इस बार लोग उल्लू महाशय को गोद लेने की अफरातफरी में हैं .
यकीन नहीं आता न आपको लेकिन हुज़ूर ये एकदम सही बात है . देहरादून चिड़ियाघर में उल्लू के खर्च उठाने के लिए हर साल उन्हें गोद दिया जाता रहा है. हालांकि यहां सभी प्रकार के वन्यजीवों को कोई भी गोद लेकर उनका खर्च उठा सकता है. लेकिन, इन दिनों लोग अन्य जीवों की बजाय कौन बनेगा करोड़पति के सटीक गारंटी उल्लू को गोद लेने में खासी दिलचस्पी दिखाते हैं. अब लोग कितने अंधविश्वासी है इसका हम कोई सार्टिफिकेट तो दे नहीं रहे हैं लेकिन इतना तो आप समझ ही सकते हैं की दिवाली से पहले बड़ी संख्या में अप्लीकेशन देकर लोग उल्लू को गोद लेकर मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं.
एक उल्लू को गोद लेने के लिए सालाना पांच हजार रुपये जमा कराने होते हैं. वहीं, उल्लू के बाड़े के बाहर उनका नाम पट्टिका पर लिखा जाएगा. साथ ही उन्हें प्रशस्ति पत्र भी प्रदान किया जाता है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, उल्लू मां लक्ष्मी का वाहन है. भारतीय संस्कृति में उल्लू का विशेष महत्व है. खासकर दिवाली के समय मां लक्ष्मी की पूजा और उल्लू का महत्व और भी बढ़ जाता है.अब तंत्र शास्त्र की ही बात करले तो माना जाता है कि जब लक्ष्मी माँ एकांत, सूने स्थान, अंधेरे, खंडहर, पाताल लोक आदि स्थानों पर जाती हैं, तब वह उल्लू पर सवार होती हैं. तब उन्हें उलूक वाहिनी कहा जाता है. उल्लू पर विराजमान लक्ष्मी अप्रत्यक्ष धन कमाने वाले व्यक्तियों के घरों में उल्लू पर सवार होकर जाती हैं। इसी लिए लोग उल्लू गोद लेकर दौलतमंद बनने का जुगाड़ ढूंढ रहे हैं लेकिन ये सच है कि अंधविश्वास से नहीं कर्म से ही काम