ग्राहकों से सेवा के नाम पर पैसा वसूली: आजकल के मॉल्स और बड़े-बड़े रिटेल स्टोर्स ने भले ही आधुनिकता की चादर ओढ़ ली हो, लेकिन जब बात ग्राहक सेवा की आती है, तो ये कहीं पीछे छूट जाते हैं। ऊंची-ऊंची इमारतें, चमचमाते शोरूम, एयर कंडीशंड वातावरण और स्वचालित बिलिंग सिस्टम सब कुछ दिखावटी ही साबित हो रहा है।
क्योंकि इन सब सुविधाओं के बावजूद, एक आम ग्राहक को उस आधारभूत सेवा से वंचित किया जा रहा है जो पहले हर दुकान में सहजता से मिलती थी।देहरादून के हठीबड़कला स्थित रिलायंस सुपरमार्केट का उदाहरण ही ले लीजिए। यहां ग्राहक अगर ₹10,000 की खरीदारी भी कर ले, तब भी उससे ₹15 अलग से सिर्फ कैरी बैग के लिए वसूले जाते हैं। इतना ही नहीं, मॉल में कोई कर्मचारी आपकी सहायता नहीं करता। ग्राहकों को अपना खरीदा हुआ सामान खुद ही बैग में भरना पड़ता है, जो कि असहज अनुभव होता है, खासकर बुजुर्गों और महिलाओं के लिए। इतना खर्च करने के बाद भी अगर सम्मानजनक सेवा न मिले, तो सवाल उठना लाजमी है।
इसके विपरीत, हमारे लोकल बाजार और मोहल्ले की दुकानें आज भी अपनापन और सेवा की मिसाल बनी हुई हैं। चाहे आप ₹50 का सामान लें या ₹500 का, वहां आपको मुफ्त कैरी बैग मिलेगा और दुकानदार खुद बड़े सलीके से आपका सामान पैक करके देगा। ये दुकानदार आपको ग्राहक से बढ़कर एक इंसान की तरह मानते हैं। अक्सर वे यह भी पूछते हैं कि कोई और मदद चाहिए या नहीं।लोकल बाजारों में वो आत्मीयता और भरोसा आज भी जिंदा है, जो मॉल्स के ग्लैमर और बड़े-बड़े दावों में कहीं खो गया है।
मॉल्स अब केवल मुनाफे की मशीन बनकर रह गए हैं, जहां ग्राहक केवल एक संख्या भर है। दूसरी ओर, लोकल दुकानदार अपने ग्राहकों को परिवार का हिस्सा मानते हैं।तो असली सवाल ये नहीं है कि कौन बड़ा है, बल्कि यह है कि कौन सेवा में बड़ा दिल रखता है। और इस कसौटी पर, हमारे लोकल दुकानदार मॉल्स से बहुत आगे हैं। इसलिए अगली बार जब आप खरीदारी करने जाएं, तो सोचिए – क्या आपको केवल सामान चाहिए या सम्मान भी?