हर्षिल के विल्सन के लकड़ी बेचने के ट्रिक्स : फ्रेडिरक ई विल्सन को उत्तराखंड में गंगोत्री के पास के एक गांव हर्षिल के लोग राजा हेलसिंग कहते थे। उसने हर्षिल पर राज किया। वहां हिमालय के देवदार पेड़ का व्यापार कर उसने अकूत धन कमाया और राजा बन गया। वहीं एक पहाड़ी औरत गुलाबी से शादी रचायी और परिवार बसाया। जीवन भर वह हर्षिल का राजा रहा और अपना सिक्का भी जारी किया। उसपर टिहरी गढ़वाल के राजा का कोई नियंत्रण नहीं था क्योंकि विल्सन खुद बहुत शक्तिशाली हो गया था।
हर्षिल के विल्सन के लकड़ी बेचने के ट्रिक्स
मंसूरी में उसने चार्ली विला होटल बनाया था जिसमें लाल बहादुर शास्त्री एकेडमी है। मसूरी में ही उसकी कब्र है। हालांकि उसकी कहानी का बयां रस्किन बांड ने करना चाहा लेकिन उन्होंने किताब का पहला अध्याय लिखने के बाद छोड़ दिया। लेकिन रस्किन के अनुसार इसका कारण यह था कि विल्सन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। फिर भी रिसर्च से जो थोड़ी-बहुत जानकारी उसके बारे में है, उसे हम साभार संक्षेप में यहां बता रहे हैं। विल्सन ब्रिटेन में कहां का रहनेवाला था और गढ़वाल कैसे पहुंचा, इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। लेकिन कहा जाता है कि वह ब्रिटिश आर्मी छोड़कर भागा था और छुपने के लिए गढ़वाल के दूरदराज इलाके में भागीरथी नदी किनारे बसे एक गांव हर्षिल में उसने अपना डेरा जमाया और वहीं का होकर रह गया।
दरअसल हर्षिल गांव वही जगह है जहां राज कपूर के ‘राम तेरी गंगा मैली’ की शूटिंग हुई थी। इसी हर्षिल में वह झरना है जिसका का नाम पड़ गया मंदाकिनी झरना । हर्षिल गांव में जब भी विल्सन अपनी बंदूक लेकर इधर-उधर शिकार के लिए निकलता, गांव वाले डर जाते। लेकिन विल्सन ने पहले हिरणों का शिकार कर उसके खाल और कस्तूरी को लंदन के एक कंपनी को बेचा।
इस काम में उसने कुछ गांव वालों को भी अपने साथ रखा और काम सिखाया। हालांकि उसके बाद उसकी नजर हिमालय के देवदार पेड़ पर पड़ी। विल्सन ने अंधाधुंध देवदार काटे और कम समय में ही वह अथाह धन कमाकर हर्षिल का शक्तिशाली राजा बन गया जिस पर टिहरी गढ़वाल के राजा का भी नियंत्रण नहीं था। उसने हर्षिल को लोगों को अपना गुलाम बनाया। उन पर मनमाने ढंग से राज किया। लेकिन कहानी तब और्व रोचक हुई जब वहां उसने अपना सिक्का भी चलवाया। हालांकि बाद में विल्सन ने एक पहाड़ी औरत गुलाबी से शादी की और परिवार बसाकर जीवन भर राज किया।
विल्सन ने लकड़ियों को बेचने का अनोखा तरीका अपनाया। वह लकड़ियों को काटता और भागीरथी नदी के तेज धारा में छोड़ देता। उसके आदमी फिर उन लकड़ियों को नीचे मैदानी भाग में पहुंचने पर निकाल लेते थे। विल्सन को इस व्यापार में अकूत धन मिलने लगा। पहले तो उसने टिहरी-गढ़वाल राजा से देवदार काटने की अनुमति नहीं ली थी। लेकिन,बाद में उसने गढ़वाल के राजा को उसका हिस्सा देकर अनुमति ले ली थी।